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देश की सारी पब्लिक का पैसा लूट लिया गया | Electoral Bonds | The Biggest Scam in History of India?

by Aajtalk
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The Biggest Scam in History of India?

देश की सारी पब्लिक का पैसा लूट लिया गया | Electoral Bonds | The Biggest Scam in History of India?

नमस्कार दोस्तों, आपका पैसा चोरी हो गया है। देश की सारी पब्लिक का पैसा लूट लिया गया है। आजाद भारत के इतिहास का ये शायद से सबसे बड़ा स्कैम है। आपको मेरी बात सुनकर शायद लगे की मैं चीजों को बढ़ा चढ़ा कर कह रहा हूँ या एक्सेगरेट कर रहा हूँ लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

बात ये है की ये इलेक्टोरल बॉन्ड स्कैम कोई एक घोटाला नहीं है बल्कि एक घोटालों का भंडार है।कैमो की एक इतनी लंबी लिस्ट है कि आप गिनते गिनते थक जाएंगे और इतना ही नहीं इसके साथ साथ ये देश का सबसे बड़ा एक्सटॉर्शन रैकेट भी है। इसमें आइए समझते हैं आज के इस वीडियो में एग्ज़ैक्ट्ली क्या हुआ है?

अगर इस पूरे घोटाले के भंडार को एक लाइन में समराइज़ करना हुआ दोस्तों तो इसे कुछ इस तरीके से किया जा सकता है। तुम मुझे चंदा दो, मैं तुम्हें धंधा दूंगा और चंदा नहीं दिया तो ED का फंदा दूंगा। इस चंदा धंदा मॉडल की बात मैंने अपने पहले भी कई वीडियो में करी है, लेकिन अब हमारे पास इसका सीधे तौर पर सबूत मौजूद है। 2017 की बात है जब मोदी सरकार ने ये इलेक्टोरल बॉन्ड्स की स्कीम इंट्रोड्यूस करी थी और इसे एक चंदा लेने का जरिया बनाया

पोलिटिकल पार्टीस के लिए फनैन्स मिनिस्टर अरुण जेटली टुडे अनाउंस दी कंट्रोवर्सी ऑफ़ ए लेटरल बांस ऑफ़ फंडिंग ऑफ़ पोलिटिकल पार्टीस खास बात ये है की स्कीम में सारी चीज़ करी जाती। जनता से छुपा कर कौन सी कंपनियां किन पार्टियों को कितना पैसा देंगी इसका कुछ नहीं पता चलना था। हमें जो लोग इस खबर को उस वक्त फॉलो कर रहे थे वो पहले ही समझ गए थे की यहाँ एक बहुत बड़ा घोटाला होने वाला है। आज से 7 साल पहले मैंने भी ये वीडियो बनाया था और खुल कर बोला था ट्वेंटी सेकंड मार्च 2 थाउज़न्ड 17इस दिन से करप्शन लीगल हो चुका है। इंडिया में कंपनी को ये बताने की जरूरत नहीं है की वो किस पोलिटिकल पार्टी को डोनेट कर रही है।

अपना पैसा ये तो सुप्रीम कोर्ट का हम सबको धन्यवाद करना चाहिए की 7 साल बाद इस स्कीम को अनकॉन्स्टिट्यूशन घोषित कर दिया गया और ये जो सारे घोटाले इन सात सालों में हुए अब ये बाहर आ रहे हैं। हमें पता लग पा रहे हैं। हाल ही में हुई इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में होम मिनिस्टर अमित शाह ने खुलेआम झूठ बोला। इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर इन्होंने कहा कि टोटल बांड्स 20,000 करोड़ रुपए की बेची गई, जिनमें से बी जे पी को सिर्फ 6000 करोड़ की मिली तो बाकी 14,000 करोड़ की बॉन्ड्स किसके पास गए?भारतीय जनता पार्टी को अप्रॉक्समट्ली 6000 करोड़ के बांड मिले हैं।

टोटल बांड 20,000 करोड़ के तो 14,000 करोड़ के बांड कहाँ गए? इनके सामने एक टी वि न्यूस एंकर भी बैठे थे जो हाथी की खिचड़ी खाकर बैठे हुए थे। या तो ये भूल गए या फिर हिम्मत नहीं हुई इनकी अमित शाह को फॅक्ट चेक करने की क्योंकि एस पर इ सी आई डेटा टोटल बॉन्ड्स 20,000 करोड़ की नहीं बल्कि 12,700 करोड़ की थी।

अप्रैल 2019 और जनवरी 2024 के बीच में जो इन कॅश करी गई, इस 12,000 करोड़ में से बी जे पी के पास 6000 करोड़ की बॉन्ड्स गई थी। जो की 47.5% होता है।इसी समय के बीच जो दूसरे नंबर पर पार्टी थी वो थी त्रिनमुल कांग्रेस, जिन्हें 1600 करोड़ की बॉन्ड्स मिली। यानी 12.6% थर्ड नंबर पर कांग्रेस 1400 करोड़ के साथ जो की 11.1% होता है, लेकिन आगे की लिस्ट भी मैं आपको गिना देता हूँ। चौथे नंबर पर बी आर एस थी 1200 करोड़ के साथ पांचवे पर बी जे डी 700,00,00,000 के साथ छठे पर डी एम के 600,00,00,000 उसके बाद वै एस आर।300,00,00,000 टी डी पी 200,00,00,000 शिवसेना 150,00,00,000 बाकीजो पार्टीस थी आर जे डी ए पी जे डी एस एस के एम एन सी पी इन सबको 30 से लेकर 70,00,00,000 के बीच में चंदा मिला।

इस लिस्ट को देखने के बाद कई बी जे पी पॉलिटिशियन और गोदी इन्फ्लुयेन्सर्स बाहर ना मारते हैं कि बी जे पी तो बहुत बड़ी पार्टी है। 300 से ज्यादा एम पी एस है। इतने सारे एम एल एस हैं। हजारों पार्टी वर्कर्स हैं तो उन्हें ज्यादा चंदा मिल रहा है तो जस्टिफाइड है ना? और अगर हम चंदा कलेक्टेड पर एम पी की रेश्यो निकालेंगे तो बी जे पी की ये रेश्यो बाकी पार्टियों से कम निकलती है।

इसका मतलब बी जे पी उतनी बुरी नहीं है जितनी और पार्टियां हैं। कोई सन्सेस बात करती है।जैसा मैंने आपको पहले बताया स्कैम यहाँ पर है तुम मुझे चंदा दो, मैं तुम्हें धंदा दूंगा, चंदा नहीं दिया तो इ डी का फंदा दूंगा, लेकिन अपने आप में सिर्फ चंदा देना या चंदा लेना, ये कोई स्कैम नहीं है।

डोनेट तो कोई भी कर सकता है पोलिटिकल पार्टीस को, लेकिन अगर डोनेशन के बदले उन्हें कोई कांट्रॅक्ट दिया जाता है, जनता के टैक्स का पैसा उन्हें दिया जाता है और जो कंपनीस डोनेशन नहीं देती उन्हें इ डी का फंदा दिया जाता है। ये है असली घोटालों का भंडार, अब कल को सोचो विजय माल्या या नीरव मोदी? ये कहने लगे कि भाई हमारी तो इतनी ज्यादा बड़ी कंपनियां इतने ज्यादा एम्पलॉईस है।

इसलिए हमने इतने सारे रुपए लूट लिए।पर एम्प्लोयी लूट की कैलकुलेशन करो तो हम हम इतने बड़े भी चोर नहीं है और लोगों की ऑब्जेक्शन ये नहीं है की विजय माल्या ने इतने करोड़ो रुपए क्यों कमाए? पैसे कमाना कुछ गलत चीज़ नहीं है। ऑब्जेक्शन ये है की जनता का पैसा लूट कर क्यों पैसे कमाए? इसी तरीके से दिक्कत किसी को इस बात से नहीं है की बी जे पी ने चंदा क्यों लिया।

दिक्कत इस बात से है की चंदा लेने के लिए यहाँ एक बड़ा एक्सटोरशन रैकेट चलाया, डेमोक्रेसी की धज्जियां उड़ाई और जनता का पैसा लूटअमित शाह ने जो खुलेआम झूठ बोला था, वही झूठ बी जे पी पॉलिटिशियन आर पी सिंह ने भी दोहराया था। कुल मिलाकर 20,000 करोड़ रुपए की चुनावी बॉन्ड आई। इसमें से 6000 करोड़ भाजपा के पास है। 14,000 करोड़ रुपए में विपक्ष के पास गए झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो और ये ए एन आई दैनिक जागरण इंडिया टुडे इन सब ने इसी झूठ को बिना चेक किए पब्लिश भी कर दिया।

झूठ पकड़ना तो छोड़ो इंडिया टुडे वालों ने तो हेडलाइन भी डाल दी अमित शाह ब्लास्ट ओप्पोसिटीओन और फिर ये लोग रोना रोते हैं कि हमें गोदी मीडिया क्यों बुलाते हो? इसलिए बुलाते हैं घोटालों की डीटेल्स में जाने से पहले आइए समझते हैं कि ये इलेक्टोरल बॉन्ड्स काम कैसे करती थी।एक इलेक्टोरल बॉन्ड को आप बेसिक्ली समझ सकते हो। दोस्तों एक कूपन की तरह कंपनी बैंक को जाकर पैसा देती थी और ये कूपन खरीदती थी और ये कूपन जाकर पोलिटिकल पार्टीस को दे दिया जाता था और पोलिटिकल पार्टीस उन कूपन्स को रिडीम कर सकती थी और जो बैंक में रखा पैसा था उसे अक्सेस कर सकती थी।

रूल ये बनाया गया था की अगर कोई भी पोलिटिकल पार्टी अपनी इलेक्टोरल बांड को एनकैश नहीं करती, कूपन को जाकर रिडीम नहीं करतीतो 15 दिन के अंदर अंदर जो भी अनक्लम्ड बॉन्ड का पैसा है वो प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फण्ड में चला जाएगा। जब ये इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम निकली तो एक जर्नलिस्ट थी, जिन्होंने सोचा और गहराई से जांच करनी चाहिए। इस चीज़ में और टेस्टिंग करने के लिए उन्होंने दो इलेक्टोरल बॉन्ड्स खुद खरीदी। ये जर्नलिस्ट थी पूनम अग्रवाल। ये एस बी आई की पार्लियामेंट ब्रांच पर गई और फिफ्थ अप्रैल और नाइन्थ अप्रैल 2018 कोइन्होंने दो इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी। दोनों की कीमत ₹1000उस वक्त ये दी क्विंट मीडिया ऑर्गेनाइजेशन के लिए काम कर रही थी।

इन्होंने जो वीडियो अपलोड किया अपने चैनल पर उस पर जाकर देख सकते हो कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर खरीदने वाले का नाम नहीं लिखा था, ना ही कोई और डीटेल लिखी थी कि ये इसे किसने खरीदा है? दिखने में ये दोनों बॉन्ड जो इन्होंने खरीदी थी, एग्ज़ैक्ट्ली सेम लग रही थी। कोई डिफरेंस नहीं है, सिवाय डेट की जो की लाल रंग में यहाँ पर यहाँ पर 5 अप्रैल दिखाए। यहाँ पर 9 अप्रैल लिखा हुआ है। इस दो चीज़ के अलावा पूरे बॉर्न में कहीं भी कोई डिफरेंस नहीं है। लेकिन जब इन्होंने एक बांड को फॉरेन्सिक टेस्टिंग के लिए भेजा तो पता चला की हर बॉन्ड में एक सीक्रेट यूनिक अल्फानुमेरिक नंबर लिखा हुआ है। ये सीक्रेट नंबर्स सिर्फ अल्ट्रावॉयलेट लाइट के नीचे दिखता है।

बड़ी शॉकिंग चीज़ थी क्योंकि इस खुलासे से मोदी सरकार का एक और झूठ पकड़ा गया। सरकार अभी तक कहती आ रही थी कि जो भी इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदेगा, हम उसकी ऐडेंटिटी छुपा कर रखे हैं। किसी को नहीं पता चलेगा कि किसने ये बांड खरीदी है। जब ये खुलासा किया गया तो फनैन्स मिनिस्ट्री को ओपेंली मानना पड़ा कि यहाँ एक सीक्रेट यूनिक नंबर है, लेकिन फिर यह कहने लगे कि हम जानते हैं यह नंबर है लेकिन यह एक सिक्योरिटी फीचर है। इस नंबर के जरिए किसी भी डोनेशन को ट्रैक नहीं किया जा सकता और पता नहीं लगाया जा सकता कि खरीदने वाला कौन है।

उस वक्त के फनैन्स मिनिस्टर लेट अरुण जेटली जी ने तो पार्लियामेंट डिबेट में इस पॉइंट को बार बार उठाया। ओप्पोसिटीओन पार्टीस को तसल्ली दिलाने लगे की चिंता मत करो। किसी को नहीं पता लगेगा कि डोनर कौन है? कौन आपको पैसे डोनेट कर रहा है? उन्होंने कहा कि हमारी सरकार का इतना बड़ा दिल है कि हम ओप्पोसिटीओन का भी ख्याल रखते हैं। कानून बनाते वक्त लेकिन गेस व्हाट?भी झूठी थी मोदी सरकार की?बार बार झूठ बोलो। रिटायर्ड नेवी ऑफिसर लोकेश बत्रा ने एक आर टी आई फाइल करी और उन्हें फनैन्स मिनिस्ट्री की एक फाइल मिली।

कुछ और भी रिकॉर्ड्स थे जिन्हें रिव्यु किया गया। हाफ पोस्ट इंडिया के द्वारा इन सब में एस बी आई ने एक्सप्लेन किया की सीरियल नंबर्स को रिकॉर्ड किए बिना ऑडिट ट्रेल करना पॉसिबल नहीं होगा। बैंक को कैसे पता चलेगा की यहाँ पर कोई बॉन्ड फॉर करी जा रही है या नहीं? कोई झूठी बॉन्ड बनाकर भी तो बैंक के पास जा सकता है। फिर जनवरी 2018 को ये नोटिफिकेशन आती है जिसके सेक्शन सिक्स फोर में लिखा होता है। एस बी आई को इलेक्टोरल बॉन्ड की डीटेल्स लॉ एनफॉर्समेंट एजेंसीज को देनी पड़ेगी। अगर उन्होंने पूछा तोअगर एस बी आई के पास कभी वो डीटेल्स थी ही नहीं अगर अक्चवली में डोनर डीटेल्स किसी को नहीं पता चलनी थी तो ये रूल कैसे काम करता? इसका मतलब अगर इ डी सी बी आई चाहती तो उन्हें हमेशा पता लग सकता था की कौन सी इलेक्टोरल बॉन्ड किस कंपनी ने डोनेट करी है।

इसका मतलब समझ रहे हो दोस्तों हम ऑलरेडी जानते है की इ डी, सी, बी, आई जैसी एजेंसीज बिलकुल कठपुतली बन चुकी है। सरकार के हाथों में इसका मतलब तीन चीजें बड़ी साफ़ हो गई। पहला पब्लिक को तो कभी पता ही नहीं चलना था कि कौन सी पोलिटिकल पार्टी को कितना चंदा दिया जाता है, कौन सी कंपनी चंदा देती है, कितने अमाउंट का देती है, पब्लिक से सब इन्फॉर्मेशन छुपाई गई। दूसराओप्पोसिटीओन पोलिटिकल पार्टीस को भी नहीं पता चलना था की बी जे पी को कौन सी कंपनीस चंदा देती है और कितना चंदा देती है। उन्हें बस अपने चंदे के बारे में पता लगता और तीसरा लेकिन बी जे पी सरकार को सब कुछ पता लगता कौन चंदा दे रहा है, कितना चंदा दे रहा है, किस पोलिटिकल पार्टीस को चंदा दिया जा रहा है? सारी कंपनीस की जानकारी सरकार के पास हमेशा रहती है। मोदी सरकार के लिए ये एक सीक्रेट हथियार बन गया ओप्पोसिटीओन के खिलाफ़और ज्यादातर ओप्पोसिटीओन पार्टीस हो, इसके बारे में कुछ नहीं पता था।

अंटिल रिसेंटली 15 फेब्रूवेरी को जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी स्कीम को अनकॉन्स्टिट्यूशन घोषित किया तो उसके पीछे एक पैटिशन रेस्पोंसिबल थी। एक पैटिशन जिसे फाइल किया था सी पी आई एम पोलिटिकल पार्टी ने और कामन कॉज और असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ए डी आर नाम के एन जी ओह एस ने अडवोकेट प्रशांत भूषण इनके बीहाफ पर आर्गु कर रहे थे।

इस स्कीम के खिलाफ़ तो ये कुछ और ऑर्गनाइज़ेशन और लोग जिनका हमें धन्यवाद करना चाहिए जिसकी वजह से ये घोटाला सामने आ पाया। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारी चीजें कही स्कीम को लेकर लेकिन दो चीजें बड़ी खास थी। पहला तो ये है कि जनता को हक है ये पता करने का की पोलिटिकल पार्टीस को कितना चंदा दिया जाता है और कौन कौन वो चंदा देता है।इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम जनता के राइट टु इन्फॉर्मेशन के अधिकार के खिलाफ़ थी और दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने अपना क्न्सर्न जताया। इस चंदा धंधा मॉडल को लेकर कोर्ट ने कहा कि ये कॉन्ट्रिब्यूशन करी जा सकती है।

पुरेली एस बिज़नेस ट्रांसक्शन कंपनियां चंदा डोनेट कर रही हैं। कुछ रिटर्न में बेनिफिट पाने के लिए इसी सबके बेसिस पर कोर्ट ने एस बी आई को डेटा रिलीज़ करने को कहा। मुझको अपने बैंक की किताब दीजिए।देश की तबाही का हिसाब दीजिए और शुरुआत में एस बी आई ने बहुत बहाने मारे कि नहीं, हमें तो तीन महीने का समय लगेगा। हम इलेक्शन के बाद ये कर सकते हैं, लेकिन कोर्ट ने जब दोबारा से ऑर्डर दिया तो डेटा 2 दिन के अंदर रिलीज़ हो गया और इलेक्शन कमिशन की वेबसाइट पर इस डेटा को पब्लिश किया गया। ये डेटा जो इलेक्शन कमिशन की वेबसाइट पर पब्लिश हुआ, ये दो अलग अलग लिस्ट में बंटा हुआ है। पहली लिस्ट बताती है कि किन किन कंपनीस ने और किन किन लोगों ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी। कितने रुपयों की और दूसरी लिस्ट बताती है की किन किन पोलिटिकल पार्टीस ने कितने अमाउंट की इलेक्टोरल बॉन्ड्स को एंकैश किया था।

लेकिन एस बी आई ने बड़ी चालाकी से जो सीक्रेट नंबर्स थे वो नहीं रिवील की है। इनके बिना दोनों लिस्ट को एग्ज़ैक्ट्ली एक दूसरे से कनेक्ट करना पॉसिबल नहीं था। फिर से जनता से चीजें छुपाने की कोशिश करी गई। एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने एस बी आई को डांट लगाई की इस तरीके से सेलेक्टिव होकर डेटा नहीं पब्लिश कर सकते। फिर इन्हें कहा गया की 21 मार्च तक सारा डेटा पब्लिश करना है। अब बाकी जो पोलिटिकल पार्टी इसी देश में उन सबको अपने अपने डोनर्स की लिस्ट तो पता थी, उन्हें पता था की उन्हें जो डोनेशन मिली है वो किसने करी है? तो 10 पोलिटिकल पार्टीस ने तो खुद ही से ही अपनी लिस्ट पब्लिक के सामने रख दी की हम अपना डेटा पब्लिकली रिवील करते है।

एस बी आई करे ना करे ये पार्टीस है समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कांग्रेस पार्टी जे डी यु जे डी एस डी एम के ए डी एम के जे के एन सी, गोवा की एक पार्टी एम जी पी और एस डी ऐफ़ सिक्किम की इनके भी ऊपर में कहूंगा चार पोलिटिकल पार्टीस है जिन्होंने इलेक्ट्रिकल बॉन्ड्स कभी एक्सेप्ट करी ही नहीं है। एस ए मैटर ऑफ़ प्रिन्सिपल ये है सी पी आई सी पी आई एम ऑल इंडिया, फॉर्वर्ड ब्लॉक और सी पी आई एम एल इन पार्टीस कोमु्द्दे पर जरूर क्रिटिसाइज़ किया जा सकता है लेकिन इस मु्द्दे पर इनका जो स्टैंड है वो तारीफ के लायक है और बाकी जो सारी पोलिटिकल पार्टीस है जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड्स को एक्सेप्ट किया, उनके लीडर्स का यही कहना है की हमने इन्हें इसीलिए एक्सेप्ट किया क्योंकि हमने सोचा ये स्कीम आई है तो इसे इस्तेमाल कर ही लेते है। ये सोच कर की हमारे डोनर्स को कोई समस्या नहीं होगी।

वैसे भी सिर्फ चंदा लेने का मतलब ये तो है नहीं की ये स्कैम है। आप कहेंगे पर इलेक्ट्रॉन बॉन्ड से तो आपको भी फायदा हुआ तो हम इस स्थिति में नहीं है की हम कांट्रॅक्ट दे सके या कोईपब्लिक सेक्टर कंपनी को बेच सके या इ डी और सी बी आई का इस्तेमाल करके धमकी देकर उनसे हफ्ता वसूली कर सके। अच्छा कोई बांड वही देगा जो धनवान है। धनवान वही है की जो कॉंट्रॅक्टर होगा, ट्रेड बिज़नेस इंडस्ट्री में बड़ा होगा।दे सकता है। तो थियरी तो आपने बहुत समझ ली। दोस्तों अब प्रैक्टिकल पर आते हैं, असली घोटालों की बात करते हैं। इन सभी घोटालों में तीन एंटिटीज़ इन्वॉल्वड पहला पोलिटिकल पार्टी जो सत्ता में है, ये बी जे पी हो सकती है सेंटर गवर्नमेंट में या कोई भी और पार्टी जिनकी स्टेट गवर्नमेंट है, दूसरा बड़ी बड़ी कंपनियां जिन्होंने चंदा डोनेट किया है इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए और तीसराआम जनता यानी पब्लिक इन तीनों के नीचे एक बक्सा रख देते हैं। पोलिटिकल पार्टी के नीचे जो बक्सा रखा है वो चंदे का डिब्बा है।

कंपनी के नीचे जो डब्बा है वो कंपनी के पैसे का डब्बा है और तीसरा पब्लिक के नीचे जो डब्बा है वो सरकारी पैसे यानी जनता के पैसे का डब्बा है। अब सोचो अगर सरकार जनता के डब्बे से पैसे निकाल कर कंपनी के डब्बे में डाल दे और रिटर्न में कंपनी अपने डब्बे से पैसे निकाल करपार्टी के डिब्बे में डाल दे? इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए क्या आप इसे एक स्कैम कहोगे या नहीं? कहोगे? ऑब्वियस्ली एक घोटाला है। हरियाणा में एक कहानी सुनाई जाती है जानी चोर की, जो अमीरों से पैसे लूटता है और गरीबों में बांटता है रॉबिनहुड की कहानी की तरह। लेकिन ये जो इलेक्टोरल बॉन्ड का घोटालों का भंडार है, यहाँ पर गरीब लोगों से आम जनता से पैसे लूटे जा रहे हैं और अमीरों को दिए जा रहे हैं। ये एग्ज़ैक्ट्ली कैसे किया जा रहा है? तीन ठोस एग्ज़ैम्पल से समझते हैं। पहला है टैक्स एवेशनशन जो कंपनियां टैक्स पे नहीं करती।

ढंग सेटैक्स ना पे करने का मतलब है की हमारे जनता के बक्से में पैसा नहीं आ रहा है। इसका मतलब सरकारी एम्पलॉईस को अपनी सैलरी टाइम पर नहीं मिलेंगे। सरकारी जॉब्स में रिक्रूटमेंट नहीं होगी। स्कूल हॉस्पिटल्स की कंडीशन्स इम्प्रूव नहीं करी जा सकेंगी क्योंकि जनता का पैसा जो जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था, वहाँ पर कमी हो रही है। अब ऐसे केस में अगर कोई कंपनी अपने टैक्सेज पे नहीं कर रही है तो सरकार को क्या करना चाहिए? उस पर रेड करी जाए, लेकिन रेड करने की जगह सोच कर देखो। एक सौदेबाजी कर ली गई की तुम हमारी पोलिटिकल पार्टी को चंदा दे दो और जो तुमनेका पैसा चुराया है वो जाए, भाड़ में कोई बात नहीं, उसकी जो घोटाला तुम कर रहे हो, हम तुम्हें करते रहने देंगे और अपनी इ डी को चुप करा लेंगे। आप क्रोनोलोजी समझ लीजिए इलेक्टोरल बॉन्ड्स की लिस्ट में टॉप फाइव डोनर कंपनियों को देखी है। इन पांच में से तीन कंपनीस है। फ्यूचर गेमिंग, मेगा इंजीनियरिंग और एक माइनिंग जॉइंट वेदांता इन सब कंपनियों पे इ डी और इन्कम टैक्स की रेड पड़ी थी। इन फॅक्ट दी क्विंटनेट टॉप 30 डोनर्स को एनालाइज किया और पता चला कीटॉप 30 में से 14 कंपनियों पर रेड पड़ी थी। एजेंसीज की अब एक तो ये चीज़ हो सकती है की कंपनी ने कुछ गलत नहीं किया था। कंपनी ईमानदार थी, लेकिन ऐसे केस में सरकार ने कहा कि तुम ईमानदार हो तो क्या हुआ? हमें तो तुम्हारा पैसा चाहिए, इसलिए चुपचाप हफ्ता निकालो, बेसिक्ली सरकार ने यहाँ पर एक्सटॉर्शन करे। यही कारण की कांग्रेस पॉलिटिशियन राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी को वसूली भाई बुलाया, लेकिन दूसरा केस हो सकता है की कंपनी ने अक्चवली मैं यहाँ पर मनी लॉन्ड्रिंग करी हो, घोटाला किया हो, लेकिन सरकार ने कहा मनी लॉन्ड्रिंग कर रहे हो, टैक्स की चोरी कर रहे हो यानी जनता के पैसे को चुरा रहे हो, कोई बात नहींचुरालो बस हमारी पार्टी को चंदा दे दो।अब कुछ लोग यहाँ पर कहेंगे कि ये चंदा धंधा का मॉडल चल रहा है, चलते रहने दो। हमारे को इससे क्या प्रॉब्लम हो रही है? पहली प्रॉब्लम तो ये है कि देखो सरकार का पैसा जनता का पैसा है। रूल्स बनाए गए हैं कि सरकार को किस तरीके से उस पैसे को स्पेंड करना है।

जनरल फाइनैंशल रूल्स का रूल 21 कहता है, जनता के पैसे खर्च करते हुए किसी भी अवसर को उतना ही चौकन्ना होना चाहिए जितना की ठीक ठाक बुद्धि वाला एक आम इंसान।अपना पैसा खर्च करते वक्त चौकन्ना होता है। सरकार किसी भी पब्लिक प्रोजेक्ट का कांट्रॅक्ट अपनी मन मर्जी से किसी भी कंपनी को नहीं दे सकते। टेंडर नोटिस इश्यू करते वक्त अलग अलग एलिजिबिलिटी के क्राइटीरिया होते है की मिनिमम लेवल ऑफ़ एक्सपीरियंस कितना है। कंपनी का पास्ट परफॉरमेंस कैसी है, उसकी उस कंपनी में टेक्निकल कैपेबिलिटी है, इस पुल को बनाने की या नहीं, उसकी मैन्युफैक्चरिंग फसिलटीज़ कैसी है? उस कंपनी की फाइनैंशल पोज़ीशन कैसी है, ये सारी चीज़े देख कर एक कंपनी को कांट्रॅक्ट दिया जाता है की कौन अच्छी क्वालिटी का काम करके देगा और कौन सही दाम में इस काम को करके देगा? कही ऐसा तो नहीं है। ओवरचार्ज कर रहे है और जनता के टैक्स का पैसा लूटा जा रहा है। अब सबको याद होगा उत्तराखंड में जो सुरंग गिरी थी, 41 मजदूर ट्रैप हो गए थे।

उसके अंदरउस सुरंग को बनाने का जो कांट्रॅक्ट था पता है किस कंपनी को दिया गया था।नवयुग इंजीनियरिंग नाम की कंपनी को और इस कंपनी ने 2019 और 2022 के बीच में 55,00,00,000 की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी। एक और किस्सा सुनाता हूँ दिसंबर 2021 में अहमदाबाद में एक अंडर कंस्ट्रक्शन फ्लाइओवर नीचे गिर गया था। इस फ्लाइओवर को बनाया जा रहा था रंजीत बिल्ड कॉर्न नाम की कंपनी के द्वारा ये तीसरा इंसिडेंट था। सेम कंपनी को इन्वॉल्व करते हुए इन्क्वायरी हुई तो पता चला इस कंपनी ने कॉन्क्रीट और कंस्ट्रक्शन की क्वालिटी पर कॉंप्रमाइज़ किया था। लेकिन पता है इसी कंपनी को गुजरात की कई सिविक बॉडीज में ढेर सारे अलग अलग प्रोजेक्ट्स भी दिए गए। वडोदरा, राजकोट, सूरतअहमदाबाद का गाँधी नगर का मेट्रो लेट प्रोजेक्ट भी इसे दिया गया हुआ धंधा और चंदा कहा है। यहाँ पर लिस्ट के अनुसार जनवरी और जुलाई 2023 के बीच में इस कंपनी ने ₹9,00,00,000 की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी।

एक और एग्ज़ैम्पल सुनो पुणे बेस्ड कंपनी बी जी शेर के कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड।जनवरी 2023 और जनवरी 2024 के बीच में इसने ₹118,00,00,000 कीइलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी और इससे करीब 1 साल पहले जून 2022 में इस कंपनी पर एक ऐफ़ आई आर हुई थी। फॉर डेथ ब्य नेग्लीजेन्स क्योंकि इस कंपनी की हाउज़िंग प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन साइट पर एक एलीवेटर क्रॅश में चार लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले ऑक्टोबर 2018 में एक और ऐसा इंसिडेंट हुआ था। इस कंपनी की कंस्ट्रक्शन साइट परटावर क्रेन से चार लोग गिरकर नीचे मर गए। अब देख सकते हो की एक पोलिटिकल पार्टी के लिए आपकी ज़िन्दगी कोई चिंता नहीं है। इन्हें बस अपने चंदे की पड़ी है। वो चिल्लाते है, तू चिल्लाने दो, पहले चिल्लाएंगे, बाद में थक जाएंगे, फिर भूल जाएंगे। इस मेघा इंजीनियरिंग कंपनी को देखिए। इसने 2019 और 23 के बीच में 966,00,00,000 कीइलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी।

इतना सारा चंदा ऑलमोस्ट 1000 करोड़ रुपए एक कंपनी पोलिटिकल पार्टीस को क्यों डोनेट करना चाहेंगी? तीन कंपनीस इससे और असोसिएटेड थी। वेस्टर्न यु पी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेडसी पी सी पावर और एवी ट्रांस प्राइवेट लिमिटेड। अगर इन सब की इलेक्टोरल बॉन्ड्स को इकट्ठा करोगे तो ये 1000 ₹200,00,00,000 से ज्यादा की रकम होती है। क्या मिला इसे रिटर्न में? जून 2019 में तेलंगाना के चीफ मिनिस्टर चंद्रशेखर राव ने क्लेस्वरम मल्टी पर्पस इरिगेशन प्रोजेक्ट इनॉगरेट किया था।अब फेब्रूवेरी 2024 में सी ए जी ने एक रिपोर्ट सबमिट करी जिसमें पता चला की इस प्रोजेक्ट की।पहली की एस्टिमेटेड कॉस्ट थी 81 थाउज़न्ड क्रोर रूपीस लेकिन अब ये 1.47,00,000 करोड़ रूपीस से ज्यादा एक्सीड कर रही थी। सी ए जी ने अपनी एक और रिपोर्ट में बताया की मेघा इंजीनियरिंग को 5100 ₹80,00,00,000 अक्सेस पे किए गए थे।

चार पैकेजेस के लिए इसमें पंप्स मोटरस की और इक्विपमेंट की सप्लाई और कमिशनिंग इन्वॉल्व थी। सी ए जी ने ये भी बताया की मेघा इंजीनियरिंग के अलावा और भी कांट्रॅक्ट थे जैसे की एल एन टी और नवयुग इंजीनियरिंग इंजीनियरिंग औरअगर इन सबको कुल मिलाकर देखा जाए तो इन सभी कॉंट्रॅक्टर्स को ऐट लिस्ट सेवेन थाउज़न्ड ₹500,00,00,000 केएक्सटेंडेड उन्द्यू बेनिफिटस मिले थे। रिपोर्ट में ये भी लिखा गया की प्रोजेक्ट्स को देने की सरकार को कुछ ज्यादा ही जल्दी लगी थी। 25,000 करोड़ के 17 अलग अलग काम डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट आने से पहले ही अवार्ड कर दिए गए थे। इतना ही नहीं इसी प्रोजेक्ट को लेकर ऑक्टोबर 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रेड फ्लैग भी रैसे किए थे। एन जी टी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को जो एनवायरनमेंटल क्लियरेंस दिया गया था, वो इलीगल था। अब क्यों?की ये चीज़ हो रही थी तेलंगाना में वहाँ पे बी आर एस पार्टी है पावर में तो कांग्रेस और बी जे पी दोनों ने कहा कि।ये बाहुबली प्रोजेक्ट एक करप्शन का सस्पूल बन गया है। लेकिन प्लॉट टु सुनो आगे ये जोजेला टनेल थी। यहाँ बी जे पी के नितिन गडकरी जो जिला सुरंग की बात कर रहे हैं, जो श्रीनगर और लेह को कनेक्ट करती है, इसका मंजूरी आपके सरकार ने दी थी। इस टेंडर में जीस कंपनी ने कांट्रॅक्ट जीता। पांच लोगों ने टेंडर भरे और हैदराबाद के एक मेधा इंजीनियरिंग करके कंपनी उन्होंने काम लिया। अलग अलग कंपनियों ने इसके लिए बिट किया था, लेकिन अगस्त 2020 में एक छोटी सी हैदराबाद की कंपनी को ये 4000 ₹500,00,00,000 का कांट्रॅक्ट मिल गया।कंपनी मेघा इंजीनियरिंग टाइम बाउंड रिसाल्ट ओरिएंटेड एंड करप्शन फीस करप्शन फिर करप्शन एक और प्रोजेक्ट को देखो ठाणे बोरी वाली ट्विन टनल मुंबई की एम एम आर डी ए ने टेंडर स्लॉट किया। दो पैकेजेस का इस सुरंग को बनाने के लिए अप्रैल 2023 मेंमेगा इंजीनियरिंग ने ₹140,00,00,000 की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी और इसके अगले ही महीने में 2023 में मेघा इंजीनियरिंग को 14,000 ₹400,00,00,000 का ये प्रोजेक्ट मिल जाता है।

ये वही कंपनी है जीस पर ऑक्टोबर 2019 में इन्कम टैक्स की रेट पड़ी थी लेकिन उसके बाद से हमें लिस्ट में दिखता है। 2019 से लेकर 24 के बीच में कितनी ो करोड़रुपए की इलेक्टोरल बॉन्ड्स इसने खरीदी और इसी टाइम पीरियड में एक के बाद एक प्रोजेक्ट्स इसे अवार्ड किए गए। नासिर तेलंगाना की स्टेट गवर्नमेंट के द्वारा बल्कि मोदी की सेंट्रल गवर्नमेंट के द्वारा भी। जून 2023 में तो इस कंपनी को इस आर्टिकल के अनुसार एक डिफेन्स मिनिस्ट्री का ₹500,00,00,000 का प्रोजेक्ट भी दे दिया गया। ये सब दोस्तों जो मैंने आपको अभी तक बताया, ये सिर्फ टिप ऑफ़ दी आइसबर्ग है। इसके अलावा एक ये बड़ा अजीब केस हीहै। फ्यूचर गेमिंगअपनी का जो की एक लॉटरी कंपनी है, जब इस कंपनी पर रेड करी जा रही थी। सेंट्रल एजेंसीज के द्वारा फनैन्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमण फोटोस ट्वीट कर रही थी, जहाँ पर ये लॉटरी किंग के बेटे से मिल रही थी। इसके अलावा कुछ केसेस है बीफ एक्सपोर्टिंग कंपनीस के जब उन्होंने इलेक्ट्रल बॉन्ड्स खरीद के चंदा दिया।

पार्टियों को तो ये एक ऐसा केस जीसको सुनकर बहुत से लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए। जो लोग धर्म के नाम पर वोट देते हैं। इस पार्टी को फिर है केसेस माइनिंग जॉइंट्स के वेदांता इ एम आई एल जी हेच सी एल एम एस पी एल कैसे इनपे आरोप लगा है एनवायरनमेंटल रूल्स को बैंड करने का एक केस है क्विक सप्लाई चैन का, जिसके सेम डायरेक्टर है जोमुकेश अंबानी की रिलायंस कंपनी के है, लिस्ट देख कर पता चलता है। इस कंपनी ने अपने नेट प्रॉफिट से ज्यादा की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी। जितना प्रॉफिट ये कंपनी नहीं कमा रही थी, उससे ज्यादा ये चंदा दे रही थी पोलिटिकल पार्टीस को, लेकिन अभी के लिए मुझे लगता है वीडियो काफी बड़ा हो गया है तो इन सारे केसेस की बात एक अगले एपिसोड में करते हैं।

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